Allahabad High Court: ‘मुस्लिमों को लिव-इन रिलेशनशिप का कोई हक नहीं’, इलाहाबाद HC का फैसला

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Allahabad High Court: मुस्लिम व्यक्ति के ‘लिव-इन रिलेशन’ में रहने के दौरान सुरक्षा मांगने की याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि, इस्लाम ऐसे किसी तरह के संबंध को इजाजत नहीं देता है.

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लखनऊ, डिजिटल डेस्क || Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट का मानना हैं कि, कोई भी मुस्लिम व्यक्ति को पत्नी के रहते ‘लिव-इन रिलेशन’ में रहने का कोई भी अधिकार नहीं है. वहीं हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा कि, “इस्लाम भी ऐसे किसी तरह के संबंध को इजाजत नहीं देता है.” मोहम्मद शादाब खान और स्नेहा देवी की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी और न्यायमूर्ति एके श्रीवास्तव प्रथम की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है. स्नेहा देवी और मोहम्मद शादाब खान ने कोर्ट में याचिका दायर कर इस मामले में दर्ज FIR को रद्द करने और सुरक्षा मुहैया कराने (‘लिव-इन रिलेशन’ में रहने के दौरान) का अनुरोध किया था.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि, “रूढ़ियां व प्रथाएं विधि के समान श्रोत हैं और भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 ऐसे किसी भी रिश्ते को मान्यता नहीं देता जो प्रथाओं व रूढ़ियों में प्रतिबंधित यानी गैर-मान्यता प्राप्त हो.” इसके अलावा कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि, सुरक्षा के साथ स्नेहा देवी को उसके माता-पिता के पास पहुंचा दिया जाये. याचिकर्ताओं का तर्क था कि, वे लोग बालिग हैं और अपनी मर्जी से ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ (Live in Relationship) में रह रहे हैं. जबकि युवती के भाई ने मोहम्मद शादाब पर अपहरण का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज कराई थी.

Allahabad High Court: पहले से शादीशुदा है शादाब खान

हाई कोर्ट में FIR को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं ने अदालत से उनके शांतिपूर्ण जीवन में दखल न दिए जाने का आदेश पारित करने का अनुरोध किया था. मामले की सुनवाई के दौरान अदालत को पता चला कि, 2020 में मोहम्मद शादाब खान की शादी फरीदा खातून से हुई थी और दोनों की एक बच्ची भी है. फरीदा खातून इस समय अपने माता पिता के साथ मुंबई में रह रही है. ऐसे में तथ्यों पर रखते हुए अदालत ने मामले पर अपना फैसला दिया.

कोर्ट (Allahabad High Court) ने अपने फैसले में कहा कि, “भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 उन मामलों में सुरक्षा का अधिकार नहीं प्रदान करता जिनमें प्रथा या रूढ़ियां भिन्न-भिन्न मत वाले व्यक्तियों को कोई कृत्य करने से मना करती हों. क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 13 रूढ़ियों और प्रथाओं को भी कानून मानता है. चूंकि इस्लाम धर्म किसी भी शादीशुदा मुसलमान व्यक्ति को ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने की इजाजत नहीं देता, अतः याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा पाने का अधिकार नहीं है.”

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