Diwali 2022: इस साल दिवाली 24 अक्टूबर को सोमवार के दिन मनाई जाएगी. दीपावली के दिन विधिपूर्वक और शुभ मुहूर्त में गणेश जी और लक्ष्मी जी का पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. हिंदू धर्म के अलावा बौद्ध, जैन और सिख धर्म में दिवाली का त्यौहार बड़े ही उत्साह से मनाया जाता हैं.
Diwali 2022 Date: दीप उत्सव यानी दीपावली (दिवाली) इस साल 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी. धनतेरस से भाई दूज तक चलने वाले इस त्यौहार को भारत सहित दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है. अंधकार पर प्रकाश की विजय के प्रतीक इस त्यौहार को हर साल दिवाली हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है. इस दिन भगवान श्री गणेश और हरिप्रिय माता लक्ष्मी का विधि-विधान से पूजन किया जाता है.
Diwali 2022: दिवाली का महत्व
कार्तिक मास की अमावस्या को भगवान श्रीराम 14 साल का वनवास पूरा कर अयोध्या वापस लौटे थे. अयोध्यावासियों ने उनके वापस लौटने की खुशी में घर-घर दीपक जलाए थे. तभी से हर साल इस त्यौहार को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है.
वहीं जैन धर्म में दिवाली को भगवान महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है. जबकि बौद्ध धर्म में इसका खास महत्व है, क्योंकि भगवान गौतम बौद्ध इस दिन अपनी जन्मभूमि कपिलवस्तु में 18 वर्षो के बाद वापस लौटे थे. इसके अलावा इसी दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया था.
वहीं सिख धर्म में भी इस दिन का विशेष महत्व है, इस दिन मुगल बादशाह जहांगीर ने सिखों के छठवें गुरू हरगोविंद साहिब जी को अपनी कैद से आजाद किया था. जब गुरू हरगोविंद सिंह जी अमृतसर पहुंचे तो पूरे गुरुद्वारे में दीप जलाकर गुरू जी का स्वागत किया गया.
Diwali 2022 Shubh Muhurat: दिवाली का शुभ मुहूर्त
इस बार 24 अक्टूबर और 25 अक्टूबर दोनों दिन ही अमावस्या है. ऐसे में लोगों के मन में संदेह है, आखिर दीवाली कब मनाई जाएगी. लेकिन ज्योतिष के अनुसार, 25 अक्टूबर को अमावस्या प्रदोष काल से पहले ही समाप्त हो जाएगी, वहीं 24 अक्टूबर को अमावस्या तिथि प्रदोष काल और निशित काल में रहेगी. जिसके कारण 24 अक्टूबर को पूरे देश में दीवाली का त्यौहार मनाया जाएगा. 24 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 29 से मिनट से अमावस्या तिथि शुरू होकर 25 अक्टूबर, मंगलवार शाम 4 बजकर 20 मिनट तक रहेगी.
Diwali: दिवाली पूजन विधि
दिवाली के दिन संध्या और रात्रि के शुभ मुहूर्त में विघ्नहर्ता भगवान गणेश, मां लक्ष्मी और माता सरस्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को माता महालक्ष्मी स्वयं पृथ्वी पर आती हैं और हर घर में जाती हैं. इस दौरान जो भी घर स्वच्छ और प्रकाशवान हो, वहां वे अंश रूप में रुक जाती हैं. इस दिन लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ धन के स्वामी कुबेर पूजा भी की जाती है.
इस दिन सबसे पहले घर की साफ-सफाई करें और पूरे घर को गंगाजल के छिड़काव से शुद्ध करें. घर के द्वार पर रंगोली बनाए और दीपक (दिये) लगाएं. पूजा स्थल में लाल कपड़ा बिछाकर उस पर गणेश जी, माता लक्ष्मी और माता सरस्वती की मूर्ति या चित्र और जल से भरा कलश रखें. माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति को तिलक करने के बाद एक दीप जलाकर माता को फल, जल, चावल, गुड़, मौली और हल्दी आदि अर्पित करने के बाद माता महालक्ष्मी की स्तुति करें. इसके अलावा अपने इष्टदेव, माता सरस्वती, माँ काली, कुबेर देव और भगवान विष्णु की पूजा करें.
ततपश्चात अपनी तिजोरी और बहीखाते की पूजा भी करें. पूजा के बाद अपनी श्रद्धा और क्षमता के अनुसार दान करें. खास बात दिवाली के दिन महालक्ष्मी पूजन पूरे परिवार को एकत्रित होकर करना चाहिए.